पढ़ें साल 2019 में अन्नप्राशन के लिए शुभ मुहूर्त और जानें अन्नप्राशन संस्कार से जुड़ी परंपरा, पूजा-अर्चना और धार्मिक महत्व।
अन्नप्राशन मुहूर्त 2019 | ||||
दिनांक | दिन | तिथि | नक्षत्र | समय अवधि |
07 जनवरी 2019 | सोमवार | प्रतिपदा | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में | 09:19 - 13:59 बजे तक |
09 जनवरी 2019 | बुधवार | तृतीया | धनिष्ठा नक्षत्र में | 07:15 - 13:15 बजे तक |
21 जनवरी 2019 | सोमवार | पूर्णिमा | पुष्य नक्षत्र में | 07:14 - 10:46 बजे तक |
06 फरवरी 2019 | बुधवार | द्वितीया | शतभिषा नक्षत्र में | 07:07 - 09:53 बजे तक |
07 फरवरी 2019 | गुरुवार | द्वितीया | शतभिषा नक्षत्र में | 07:06 - 12:09 बजे तक |
15 फरवरी 2019 | शुक्रवार | दशमी | मृगशिरा नक्षत्र में | 07:27 - 13:19 बजे तक |
08 मार्च 2019 | शुक्रवार | द्वितीया | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में | 06:40 - 14:13 बजे तक |
13 मार्च 2019 | बुधवार | सप्तमी | रोहिणी नक्षत्र में | 06:34 - 13:53 बजे तक |
21 मार्च 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में | 06:25 - 07:13 बजे तक |
10 अप्रैल 2019 | बुधवार | पंचमी | रोहिणी नक्षत्र में | 06:02 - 14:24 बजे तक |
12 अप्रैल 2019 | शुक्रवार | सप्तमी | आर्द्रा नक्षत्र में | 09:54 - 13:24 बजे तक |
17 अप्रैल 2019 | बुधवार | त्रयोदशी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में | 05:54 - 13:56 बजे तक |
19 अप्रैल 2019 | शुक्रवार | पूर्णिमा | चित्रा नक्षत्र में | 06:02 - 16:05 बजे तक |
16 मई 2019 | गुरुवार | द्वादशी | हस्ता नक्षत्र में | 08:15 - 14:19 बजे तक |
06 जून 2019 | गुरुवार | तृतीया | पुनर्वसु नक्षत्र में | 05:23 - 09:55 बजे तक |
07 जून 2019 | शुक्रवार | चतुर्थी | पुष्य नक्षत्र में | 07:38 - 15:09 बजे तक |
12 जून 2019 | बुधवार | दशमी | हस्ता नक्षत्र में | 06:06 - 14:49 बजे तक |
17 जून 2019 | सोमवार | पूर्णिमा | ज्येष्ठा नक्षत्र में | 10:43 - 14:00 बजे तक |
04 जुलाई 2019 | गुरुवार | द्वितीया | पुष्य नक्षत्र में | 05:28 - 15:42 बजे तक |
08 जुलाई 2019 | सोमवार | षष्ठी | उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में | 07:42 - 15:26 बजे तक |
11 जुलाई 2019 | गुरुवार | दशमी | स्वाति नक्षत्र में | 05:31 - 15:15 बजे तक |
05 अगस्त 2019 | सोमवार | पंचमी | हस्ता नक्षत्र में | 05:45 - 15:55 बजे तक |
07 अगस्त 2019 | बुधवार | सप्तमी | स्वाति नक्षत्र में | 07:42 - 15:26 बजे तक |
09 अगस्त 2019 | शुक्रवार | नवमी | अनुराधा नक्षत्र में | 10:00 - 15:40 बजे तक |
15 अगस्त 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | श्रवण नक्षत्र में | 05:50 - 15:16 बजे तक |
11 सितंबर 2019 | बुधवार | त्रयोदशी | श्रवण नक्षत्र में | 06:04 - 13:59 बजे तक |
30 सितंबर 2019 | सोमवार | द्वितीया | चित्रा नक्षत्र में | 06:13 - 12:08 बजे तक |
02 अक्टूबर 2019 | बुधवार | चतुर्थी | विशाखा नक्षत्र में | 12:52 - 14:11 बजे तक |
03 अक्टूबर 2019 | गुरुवार | पंचमी | अनुराधा नक्षत्र में | 06:15 - 10:12 बजे तक |
04 अक्टूबर 2019 | शुक्रवार | षष्ठी | ज्येष्ठा नक्षत्र में | 12:19 - 14:03 बजे तक |
07 अक्टूबर 2019 | सोमवार | नवमी | उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में | 12:38 - 13:52 बजे तक |
30 अक्टूबर 2019 | बुधवार | तृतीया | अनुराधा नक्षत्र में | 06:32 - 14:03 बजे तक |
01 नवंबर 2019 | शुक्रवार | पंचमी | मूल नक्षत्र में | 06:33 - 12:50 बजे तक |
06 नवंबर 2019 | बुधवार | नवमी | शतभिषा नक्षत्र में | 07:21 - 13:36 बजे तक |
07 नवंबर 2019 | गुरुवार | दशमी | शतभिषा नक्षत्र में | 06:37 - 08:41 बजे तक |
28 नवंबर 2019 | गुरुवार | द्वितीया | ज्येष्ठा नक्षत्र में | 07:34 - 13:37 बजे तक |
29 नवंबर 2019 | शुक्रवार | तृतीया | मूल नक्षत्र में | 06:55 - 07:33 बजे तक |
06 दिसंबर 2019 | शुक्रवार | दशमी | उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में | 07:00 - 13:05 बजे तक |
12 दिसंबर 2019 | गुरुवार | पूर्णिमा | मृगशिरा नक्षत्र में | 07:04 - 10:42 बजे तक |
भोजन प्राणीमात्र के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है। यह एक तथ्य ही नहीं बल्कि सत्य भी है कि हम जो भी खाते हैं, उसका हमारे तन और मन दोनों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कहा भी जाता है कि 'जैसा खाये अन्न-वैसा होये मन'। शास्त्रों में भोजन के तीन प्रकार बताये गए हैं- सात्विक, राजसिक और तामसिक भोजन, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, सात्विक भोजन शुद्ध घी, हरी साग-सब्ज़ियां, राजसिक भोजन में लहसुन-प्याज़ और मसालेदार भोजन तथा तामसिक भोजन में मांसाहार शामिल होता है। लंबा और निरोगी जीवन जीने के लिए सात्विक भोजन करने की सलाह दी जाती है.
हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों में से एक 'अन्नप्राशन संस्कार' भी महत्वपूर्ण संस्कार है। अन्नप्राशन एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है- 'भोजन खिलाना'। बालक जन्म से छह माह की आयु तक माता के दूध पर निर्भर रहता है। इसके बाद उसे ठोस आहार देने की जरुरत होती है। बच्चों के दाँत भी इस समय में निकलना शुरू हो जाते हैं, जिसे प्रकृति की स्वीकृति का संकेत माना जाता है कि अब बालक को ठोस आहार देना शुरू कर देना चाहिए। अन्नप्राशन संस्कार में, हवन आदि विधिवत धार्मिक अनुष्ठान के द्वारा पहली बार बालक को दूध के अलावा ठोस आहार जैसे- दही, शहद, घी और चावल खिलाया जा सकता है। इसके अलावा बालक के माता के गर्भ में रहने के दौरान बालक के शरीर में दूषित भोजन के जो दोष आ जाते हैं, उन्हें दूर करने के लिए और बालक के अच्छे पोषण के लिए भी अन्नप्राशन संस्कार किया जाता है।
अन्नप्राशन एक शुभ और महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में हर शुभ काम से पहले शुभ समय यानि मुहूर्त देखने की प्रथा है। इसी कारण अन्नप्राशन संस्कार के लिए भी शुभ मुहूर्त निकाला जाता है, ताकि बालक के जीवन का यह संस्कार शुभ समय में सबके आशीर्वाद के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हो सके। शुभ मुहूर्त किसी अनुभवी और योग्य ज्योतिषी से ही निकलवायें।
याज्ञवल्क्य और मनु का मानना है कि बालकों का अन्नप्राशन संस्कार सम मासों (6,8,10,12) और कन्याओं का अन्नप्राशन संस्कार विषम मासों (5,7,9,11) में किया जाना चाहिए।
अन्नप्राशन संस्कार के लिए, आमतौर पर चाँदी के पाँच बर्तन खरीदें जाते हैं। एक नए और अलग पात्र में सूजी या चावल की खीर, शहद, घी और तुलसी के पत्ते और गंगाजल रखें। अब पात्रों को रोली और चंदन लगाकर विधिवत पूजा करें। अन्नप्राशन क्योंकि विशेष रूप से बालक को पहली बार अन्न खिलाने की प्रक्रिया है, इसलिए माता-पिता बालक के साथ देवी अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना अवश्य करें, ताकि बालक को देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद और कृपा मिल सके। इसके बाद पहले से बनाकर रखी गई खीर का भोग भगवान् को लगाएं, फिर बालक के माता-पिता या उसके घर के बड़े-बुज़ुर्ग अन्नप्राशन मन्त्र पढ़ें-
अर्थात् हे बालक! जौ और चावल तुम्हारे लिए बलदायक तथा पुष्टिकारक हो, क्योंकि ये दोनों वस्तुएं यक्ष्मानाशक हैं तथा देवान्न होने से पापनाशक हैं!
बोलते हुए प्रसाद के रूप में उस खीर को चाँदी के बर्तन में लेकर बालक को खिलाएं। इसके बाद विशेष आहुति दिलवाकर खीर का प्रसाद अन्य लोगों को भी बाँट दिया जाना चाहिए.
शास्त्रों में कहा गया है अन्न प्राण है, हम जो भी खाते हैं उसका पूरा प्रभाव हमारे मन और विचारों पर भी पड़ता है। इससे जुडी एक पौराणिक कथा भी है- महाभारत के युद्ध में शर-शैय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म जब पांडवों को धर्म उपदेश दे रहे थे, तो वहां मौजूद द्रौपदी अचानक ठहका मारकर हंस पड़ीं, भीष्म द्वारा उनके ऐसे हँसने का कारण पूछे जाने पर द्रौपदी ने कहा कि आज आप धर्म का उपदेश दे रहे हैं, लेकिन जब भरी सभा में मेरा अपमान किया जा रहा था, तब आपका यह धर्म कहां चला गया था और आपने दुर्योधन को यह धर्म उपदेश क्यों नहीं दिया? इसी विरोधाभास को देखकर मुझे हँसी आ गयी। इसपर भीष्म ने कहा- कि हे द्रौपदी, तुम्हारा कहना सही है, लेकिन उस समय में दुर्योधन का अन्न खाता था, इसलिए जैसा दुर्योधन था वैसा ही उसका अन्न और उसकी प्रवृति भी थी, इसलिए उस अन्न का सेवन करने से मेरा रक्त, बुद्धि और मन भी वैसे ही हो गया था। लेकिन अर्जुन के बाणों से बिंधने के बाद वह सारा दूषित रक्त बह गया, इसलिए अब मैं धर्म और न्यायसंगत बातें सोच और कह पा रहा हूँ.
उपरोक्त कथा हमारे तन-मन और क्रियाओं पर भी अन्न के असर को बताती है। इसलिए हमेशा सात्विक भोजन करें ताकि आपका अंतःकरण शुद्ध रह सके। अन्न प्राण है, हर जीवित प्राणी को भोजन की जरुरत होती है। अन्न उपजाने वाले किसान को यूँ ही अन्नदाता नहीं कहा जाता है।
इसलिए एक शिशु बालक/बालिका में शारीरिक बल और स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि सद्बुद्धि, मेधा और अच्छे संस्कारों का भी समुचित विकास हो, वस्तुतः अन्नप्राशन संस्कार का यही आदर्श और उद्देश्य है।
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